दोस्तों मनुष्य के जीवन में सुख और दुःख लगा ही रहता है. कभी मनुष्य अपने जीवन से बेहद खुश रहता है तो कभी वही मनुष्य अपने जीवन से दुखी होकर ,अपने जीवन का त्याग करने की कोशिशे करने लगता है. ऐसा क्यों होता है क्या कभी आप जान पाए है? दोस्तों जीवन में उतार चढ़ाव तो लगा ही रहता है इसी का नाम ज़िंदगी है. लेकिन कभी मनुष्य के जीवन में ख़ुशी ही नहीं रहती उसके जीवन में हर दिन कलेश होता ही रहता है. सुख-चैन नहीं रहता, ये जानना बहुत जरुरी है की आपके जीवन में ऐसा क्यों हो रहा है .
हमारे द्वारा किये गए कर्मो के कारण भी हमे दुःख का सामना अपने जीवन में कभी न कभी करना ही पड़ता है.यदि आपके कर्म अच्छे होंगे तो आपका आने वाला कल भी अच्छा होगा जी हां यहां सारा खेल ही कर्मो का है. कर्मो का फल देने वाले न्याय के देवता है शनि देव जो मनुष्य के कर्मो का फल देते है.
उनके अच्छे कर्म के अच्छे फल और बुरे कर्म के बुरे फल देते है. शनि साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव मनुष्य के जीवन पर बहुत अधिक पड़ता है. ऐसा माना जाता है कि कई बार ये फल पिछले जन्मों में किए कर्मों का भी होता है.
यदि मनुष्ये अपने द्वारा किये गए बुरे कर्मो का पश्चाताप करे तो शनि महाराज भी उस मनुष्य से अपनी कुदृष्टि हटा देते है और उसको अच्छे फल देने लगते है. दोस्तों आपको आज हम यहां शनि महराज को खुश करने के तरीके बताने जा रहे है तो चलिए नीचे पोस्ट में पढ़िये
कर्मो का फल देते है शनि देव लेकिन हनुमान जी की उपासना से कम होता है कष्ट , शनिदेव मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल देने वाले देवता है. ऐसे में मनुष्य को बहुत कष्ट और शनि के दण्डों का सामना करना पड़ता है. शनिदेव के दण्ड से बचने का उपाय
क्यों महत्व रखते है हनुमान जी, जानिए इसके पीछे की कथा
ऐसी मान्यता है कि एक बार शनिदेव का पवनसुत हनुमान से युद्ध हुआ जिसमें शनि महाराज की पराजय हुई उसके बाद शनिदेव ने हनुमान जी को ये वचन दिया कि वह कभी हनुमान जी के भक्तो को नुकसन नहीं पहुचाएंगे और उनकी भक्ति और उपाय करने वाले मनुष्य को कभी परेशान नहीं करेंगे. एवं जो मनुष्य परेशानी मे होगा उसकी चिंता भी दूर करेंगे.
हनुमान की नियमित आराधना करें
भगवान हनुमान जी की नियमित आराधना से शनि देव खुश होते है एवं लोगों को शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से लाभ मिलता है. हनुमान जी के इस स्तोत्र पाठ को करने से शनि देव की साढ़ेसाती और ढैय्या को दूर किया जा सकता हैै.
हनुमान जी का स्त्रोत पाठ है-
हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भेवत्।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।
हनुमान चालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
हनुमान जी के 108 नाम
हनुमान जी के 108 नाम प्रतिदिन जो जपता है उसकी परेशानियाँ तो खतम होती ही है, साथ में प्रभु की कृपा भी प्राप्त होती है.
1. | आंजनेया | : | अंजना का पुत्र |
2. | महावीर | : | सबसे बहादुर |
3. | हनूमत | : | जिसके गाल फुले हुए हैं |
4. | मारुतात्मज | : | पवन देव के लिए रत्न जैसे प्रिय |
5. | तत्वज्ञानप्रद | : | बुद्धि देने वाले |
6. | सीतादेविमुद्राप्रदायक | : | सीता की अंगूठी भगवान राम को देने वाले |
7. | अशोकवनकाच्छेत्रे | : | अशोक बाग का विनाश करने वाले |
8. | सर्वमायाविभंजन | : | छल के विनाशक |
9. | सर्वबन्धविमोक्त्रे | : | मोह को दूर करने वाले |
10. | रक्षोविध्वंसकारक | : | राक्षसों का वध करने वाले |
11. | परविद्या परिहार | : | दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाले |
12. | परशौर्य विनाशन | : | शत्रु के शौर्य को खंडित करने वाले |
13. | परमन्त्र निराकर्त्रे | : | राम नाम का जाप करने वाले |
14. | परयन्त्र प्रभेदक | : | दुश्मनों के उद्देश्य को नष्ट करने वाले |
15. | सर्वग्रह विनाशी | : | ग्रहों के बुरे प्रभावों को खत्म करने वाले |
16. | भीमसेन सहायकृथे | : | भीम के सहायक |
17. | सर्वदुखः हरा | : | दुखों को दूर करने वाले |
18. | सर्वलोकचारिणे | : | सभी जगह वास करने वाले |
19. | मनोजवाय | : | जिसकी हवा जैसी गति है |
20. | पारिजात द्रुमूलस्थ | : | प्राजक्ता पेड़ के नीचे वास करने वाले |
21. | सर्वमन्त्र स्वरूपवते | : | सभी मंत्रों के स्वामी |
22. | सर्वतन्त्र स्वरूपिणे | : | सभी मंत्रों और भजन का आकार जैसा |
23. | सर्वयन्त्रात्मक | : | सभी यंत्रों में वास करने वाले |
24. | कपीश्वर | : | वानरों के देवता |
25. | महाकाय | : | विशाल रूप वाले |
26. | सर्वरोगहरा | : | सभी रोगों को दूर करने वाले |
27. | प्रभवे | : | सबसे प्रिय |
28. | बल सिद्धिकर | : | बल की सिद्धि करवाने वाले |
29. | सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायक | : | ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने वाले |
30. | कपिसेनानायक | : | वानर सेना के प्रमुख |
31. | भविष्यथ्चतुराननाय | : | भविष्य की घटनाओं के ज्ञाता |
32. | कुमार ब्रह्मचारी | : | युवा ब्रह्मचारी |
33. | रत्नकुण्डल दीप्तिमते | : | कान में मणियुक्त कुंडल धारण करने वाले |
34. | चंचलद्वाल सन्नद्धलम्बमान शिखोज्वला | : | जिसकी पूंछ उनके सर से भी ऊंची है |
35. | गन्धर्व विद्यातत्वज्ञ | : | आकाशीय विद्या के ज्ञाता |
36. | महाबल पराक्रम | : | महान शक्ति के स्वामी |
37. | काराग्रह विमोक्त्रे | : | कैद से मुक्त करने वाले |
38. | शृन्खला बन्धमोचक | : | तनाव को दूर करने वाले |
39. | सागरोत्तारक | : | सागर को उछल कर पार करने वाले |
40. | प्राज्ञाय | : | विद्वान |
41. | रामदूत | : | भगवान राम के राजदूत |
42. | प्रतापवते | : | वीरता के लिए प्रसिद्ध |
43. | वानर | : | बंदर |
44. | केसरीसुत | : | केसरी के पुत्र |
45. | सीताशोक निवारक | : | सीता के दुख का नाश करने वाले |
46. | अन्जनागर्भसम्भूता | : | अंजनी के गर्भ से जन्म लेने वाले |
47. | बालार्कसद्रशानन | : | उगते सूरज की तरह तेजस |
48. | विभीषण प्रियकर | : | विभीषण के हितैषी |
49. | दशग्रीव कुलान्तक | : | रावण के राजवंश का नाश करने वाले |
50. | लक्ष्मणप्राणदात्रे | : | लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले |
51. | वज्रकाय | : | धातु की तरह मजबूत शरीर |
52. | महाद्युत | : | सबसे तेजस |
53. | चिरंजीविने | : | अमर रहने वाले |
54. | रामभक्त | : | भगवान राम के परम भक्त |
55. | दैत्यकार्य विघातक | : | राक्षसों की सभी गतिविधियों को नष्ट करने वाले |
56. | अक्षहन्त्रे | : | रावण के पुत्र अक्षय का अंत करने वाले |
57. | कांचनाभ | : | सुनहरे रंग का शरीर |
58. | पंचवक्त्र | : | पांच मुख वाले |
59. | महातपसी | : | महान तपस्वी |
60. | लन्किनी भंजन | : | लंकिनी का वध करने वाले |
61. | श्रीमते | : | प्रतिष्ठित |
62. | सिंहिकाप्राण भंजन | : | सिंहिका के प्राण लेने वाले |
63. | गन्धमादन शैलस्थ | : | गंधमादन पर्वत पार निवास करने वाले |
64. | लंकापुर विदायक | : | लंका को जलाने वाले |
65. | सुग्रीव सचिव | : | सुग्रीव के मंत्री |
66. | धीर | : | वीर |
67. | शूर | : | साहसी |
68. | दैत्यकुलान्तक | : | राक्षसों का वध करने वाले |
69. | सुरार्चित | : | देवताओं द्वारा पूजनीय |
70. | महातेजस | : | अधिकांश दीप्तिमान |
71. | रामचूडामणिप्रदायक | : | राम को सीता का चूड़ा देने वाले |
72. | कामरूपिणे | : | अनेक रूप धारण करने वाले |
73. | पिंगलाक्ष | : | गुलाबी आँखों वाले |
74. | वार्धिमैनाक पूजित | : | मैनाक पर्वत द्वारा पूजनीय |
75. | कबलीकृत मार्ताण्डमण्डलाय | : | सूर्य को निगलने वाले |
76. | विजितेन्द्रिय | : | इंद्रियों को शांत रखने वाले |
77. | रामसुग्रीव सन्धात्रे | : | राम और सुग्रीव के बीच मध्यस्थ |
78. | महारावण मर्धन | : | रावण का वध करने वाले |
79. | स्फटिकाभा | : | एकदम शुद्ध |
80. | वागधीश | : | प्रवक्ताओं के भगवान |
81. | नवव्याकृतपण्डित | : | सभी विद्याओं में निपुण |
82. | चतुर्बाहवे | : | चार भुजाओं वाले |
83. | दीनबन्धुरा | : | दुखियों के रक्षक |
84. | महात्मा | : | भगवान |
85. | भक्तवत्सल | : | भक्तों की रक्षा करने वाले |
86. | संजीवन नगाहर्त्रे | : | संजीवनी लाने वाले |
87. | सुचये | : | पवित्र |
88. | वाग्मिने | : | वक्ता |
89. | दृढव्रता | : | कठोर तपस्या करने वाले |
90. | कालनेमि प्रमथन | : | कालनेमि का प्राण हरने वाले |
91. | हरिमर्कट मर्कटा | : | वानरों के ईश्वर |
92. | दान्त | : | शांत |
93. | शान्त | : | रचना करने वाले |
94. | प्रसन्नात्मने | : | हंसमुख |
95. | शतकन्टमदापहते | : | शतकंट के अहंकार को ध्वस्त करने वाले |
96. | योगी | : | महात्मा |
97. | मकथा लोलाय | : | भगवान राम की कहानी सुनने के लिए व्याकुल |
98. | सीतान्वेषण पण्डित | : | सीता की खोज करने वाले |
99. | वज्रद्रनुष्ट | : | वज्र की तरह मजबूत |
100. | वज्रनखा | : | वज्र की तरह मजबूत नाखून |
101. | रुद्रवीर्य समुद्भवा | : | भगवान शिव का अवतार |
102. | इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्र विनिवारक | : | इंद्रजीत के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को नष्ट करने वाले |
103. | पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने | : | अर्जुन के रथ पार विराजमान रहने वाले |
104. | शरपंजर भेदक | : | तीरों के घोंसले को नष्ट करने वाले |
105. | दशबाहवे | : | दस्द भुजाओं वाले |
106. | लोकपूज्य | : | ब्रह्मांड के सभी जीवों द्वारा पूजनीय |
107. | जाम्बवत्प्रीतिवर्धन | : | जाम्बवत के प्रिय |
108. | सीताराम पादसेवा | : | भगवान राम और सीता की सेवा में तल्लीन रहने वाले |
दोस्तों इन नामो का भी जाप करे तो कष्ट अपने-आप कम होने लगेंगे भगवान की कृपा दृष्टि आप पर बनी रहेगी
जय श्री राम
जय बजरंगबली
ॐ शं शनिश्चराय नमः
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